यात्राविवरण , कविता , कहानी , चित्र

शनिवार, 18 सितंबर 2010

स्वर्ग

कितना सुन्दर हैं यह सागर

कितना खूबसूरत भी हैं

कितने मजदूरों का जीवन

फैला हैं इस सागर में

लहरें किनारे की और आती जाती हैं

खेलते हैं बचों लहरों पर

खूम्थी फिरती हैं मिटाई वाले

होनेवाला हैं सूर्यास्त

जहास पर बीते मुसफिरबाबा ने कहा

यह हैं स्वर्ग , सच्चा स्वर्ग

नीतु एन एस

डी

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